संदेश

एक बार निश्चय कर देख।

रोज-रोज दो कदम चलकर  एक बार घर से निकलकर देख, अगर लम्बा हो सफ़र तो दो-चार ठोकर खाकर देख, मजबूरियों के शीशे तोड़कर  मील के पत्थर को छूकर देख, बसाए हो सपने ज़हन में अगर एक बार जीवन में उतार कर देख, जिस राह पर भविष्य ना दिखे  बदलने का जोखिम लेकर देख, फीकी पड़ गई हो तस्वीर अगर एक बार और रंग भरकर देख, जब समय तेरे विपरीत चले तू अपनी चाल बदलकर देख, पाओगे खुद को सबसे आगे  एक बार निश्चय कर देख।।

ज़िन्दगी एक खेल है!

किस्मत पासे फैंकती, समय चले चाल अपनी मर्ज़ी मन करे, बुद्धि बने है ढाल।। अनुभवों से ज्ञान मिला, विचार का जंजाल  उत्सुक और विवेक का , खेल है बेमिसाल।। ज्ञानी हो या अज्ञानी, अमीर या कंगाल  सबके सब है खेलते, दिन महीने व साल।। उम्र सारी बीत गई, न छूटा मोहजाल  समझ-समझ के न समझे, मृत्युलोक का जाल।। मौसम अहसासों भरा, चाह का भक्तिकाल  पहेली है दिन-रात की, बीता जीवनकाल।।

भटकन

जब भटकन मुझे थका देती है, तो मैं ठीक उस बच्चे की तरह, जो गिरने के बाद फिर से उठकर, पूरे उत्साह से भागने लगता है। ठीक वैसे ही, मैं भी फिर अपने राह पर चलने लगती हूँ।  क्योंकि!  जो पहले से ज्यादा आर्कषित और ज्यादा थका देने वाली, आगे एक और भटकन मेरा इंतजार कर रही होगी।

राजनीति का खेल

राजनीति! इस खेल में किसी भी बात की  कोई भी सीमा कहाँ होती है,  यहाँ तो बस पासे पे पासे फैंके जाते हैं, ना ही जीत का ना ही हार का  कोई मतलब रहता है।  यहाँ जो अंत तक  बेहतर खेलेगा;  वहीं विजेता कहलायेगा,  और वही सही साबित होगा।

आलस

आलस-- जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप, खत्म कर दे जो  भूत, भविष्य और वर्तमान,  पूर्वजों की समृद्धि-स्वाभिमान। तुम्हारे अन्दर पल रहे महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध, महावीर, कृष्णा जैसी सम्भावना, तुम्हारी ईच्छाएँ , सपने, कर्म,भाव,  एक अकल्पनीय बुद्धि ऊर्जावान। प्रेम से भरा मन और शक्तिशाली तन   एक शानदार व्यक्तित्व,  खत्म कर दे जो सारा अभिमान। आलस !  जीवन बना दे श्मशान  ( जहाँ सिर्फ राख ही राख है)।।

कर्म ही सत्य है!

कर्म ही सत्य है! सच्चाई की धारा निर्मल है स्वच्छ है  कोमल है सुगंधित है, जो निरंतर प्रवाहित है। सत्य तो आनन्दित है।। कर्म ही धर्म कर्म जीवन है, लक्ष्य तो मील का पत्थर है।  मन का हो या नियति का जन्म-मृत्यु का सफर है। ब्रह्माण्ड का सत्य भी कर्म से ही प्रभावित है, सत्य तो आनन्दित है।।

उपनिषद ज्ञान मार्ग

उपनिषद का अर्थ है। अपने गुरु के पास दृढ़ निश्चय के साथ अनासक्त होकर उस ज्ञान के लिए बैठना जो तुम्हें ब्रह्म तक ले जायेगा।         उपनिषद ज्ञान का मार्ग है और ज्ञान मुक्ति का मार्ग है। ज्ञान हमें शक्ति देता है अपनी ज्ञानेंद्रियों पर विजय पाने की, और हमें तन की, मन की, धन की, शासन की वासनाओं से मुक्त करने की।  इमानदार व पवित्र बनो , जो भी करो,   ये मत भूलो कि हम उस परमपिता के गुलाम हैं, उसकी सेवा करने का एक मात्र तरीका है। मानव की सेवा करना। तुम्हारा पर शुभ हो💐