संदेश

आलस

आलस-- जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप, खत्म कर दे जो  भूत, भविष्य और वर्तमान,  पूर्वजों की समृद्धि-स्वाभिमान। तुम्हारे अन्दर पल रहे महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध, महावीर, कृष्णा जैसी सम्भावना, तुम्हारी ईच्छाएँ , सपने, कर्म,भाव,  एक अकल्पनीय बुद्धि ऊर्जावान। प्रेम से भरा मन और शक्तिशाली तन   एक शानदार व्यक्तित्व,  खत्म कर दे जो सारा अभिमान। आलस !  जीवन बना दे श्मशान  ( जहाँ सिर्फ राख ही राख है)।।

कर्म ही सत्य है!

कर्म ही सत्य है! सच्चाई की धारा निर्मल है स्वच्छ है  कोमल है सुगंधित है, जो निरंतर प्रवाहित है। सत्य तो आनन्दित है।। कर्म ही धर्म कर्म जीवन है, लक्ष्य तो मील का पत्थर है।  मन का हो या नियति का जन्म-मृत्यु का सफर है। ब्रह्माण्ड का सत्य भी कर्म से ही प्रभावित है, सत्य तो आनन्दित है।।

उपनिषद ज्ञान मार्ग

उपनिषद का अर्थ है। अपने गुरु के पास दृढ़ निश्चय के साथ अनासक्त होकर उस ज्ञान के लिए बैठना जो तुम्हें ब्रह्म तक ले जायेगा।         उपनिषद ज्ञान का मार्ग है और ज्ञान मुक्ति का मार्ग है। ज्ञान हमें शक्ति देता है अपनी ज्ञानेंद्रियों पर विजय पाने की, और हमें तन की, मन की, धन की, शासन की वासनाओं से मुक्त करने की।  इमानदार व पवित्र बनो , जो भी करो,   ये मत भूलो कि हम उस परमपिता के गुलाम हैं, उसकी सेवा करने का एक मात्र तरीका है। मानव की सेवा करना। तुम्हारा पर शुभ हो💐

जय गणपति जय जय गणनायक!

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               रिद्धि सिद्धि बुद्धि दाता, गौरी पुत्र गणेश                बार-बार प्रणाम करूँ, हे प्रथम पूज्य नरेश।।                       (1) जय गणपति, जय जय गणनायक। आओ पधारो मेरे विघ्न विनायक।। ब्रह्मा भी आए, विष्णु भी आए, सरस्वती संग आए मेरे बुद्धि दायक।। शिवजी भी आए, नन्दी भी आए, पार्वती मैया जगाए लल्ला शुभदायक।। रामा भी आए, कृष्णा भी आए, लक्ष्मी संग विराजे मेरे सिद्धिविनायक।। साधु भी आए, संतन भी आए, भक्तों के संग आए मेरे विश्वविनायक।। "ये भजन राजस्थानी भक्ति गीत से प्रेरित होकर लिखा है।,,                     (2) जय गणपति, जय जय गणनायक। आओ पधारो मेरे विघ्न विनायक।। गंगा जल लाए, फूल भी लाए, सुंदर सिंहासन विराजे मेरे शुभदायक।। तुमको ध्याएँ, देव मनाएँ, हे सुन्दर पीताम्बर, शिव-गौरी के बालक।। छोटे से बालक, मन भाए मोदक, लड्डू का भोग लगाए मेरे जगपालक।।  काज हमारे, तुम्हीं संवारे,  मूषक स...

सरस्वती माँ शारदे

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सरस्वती माँ शारदे, शत् शत् कोटि प्रणाम। विराजो मन मंदिर में, सिद्ध करो शुभ काम।। हे माँ ब्रह्मस्वरूपा, हे माँ वेद पुराण। वीणा पुस्तक धारिणी, सबका हो कल्याण।। हे माँ ज्ञान स्वरूपिणी, हे ब्रह्मा का ज्ञान। बल बुद्धि और ज्ञान का, हमको दो वरदान।। हे माँ विद्या दायिनी, दूर करो अज्ञान। भक्तजनों को दीजिए, विद्या का वरदान।। सृष्टि के हर कण कण में, वीणा का अनुराग। माँ के दर्शन मात्र से, जागे सबसे भाग।। हंसवाहिनी माँत की, महिमा अपरम्पार। मधुर नाद भर शून्य में, करती है उद्धार।। जननी स्वर लय ताल की, ज्ञान भरा भंडार। ज्ञान की ज्योति से हरो, हृदय का अंधकार।। सात सुरों के ताल पर, झूम रहा संसार। तीन लोक में हो रही, माँ की जय जयकार।। वीणा के मधुर नाद से, बह रही सरस तान। नव जीवन नव सृजन में, भर दो सरगम गान।। सद्गुण वैभव शालिनी, रहे सत्य का ज्ञान। निर्मल कोमल सभ्य हो, मन हो निष्ठावान।। हे माँ वीणा वादिनी, ऐसा दो वरदान। साधना को शक्ति मिले, और मिले पहचान।। शरणागत रक्षा करो, पूरन कीजो काज। दया करो हे भगवती, रखियो मेरी लाज।।

मुक्तक

1 कभी मौसम कभी कुदरत कहर बनकर सताती है कभी  सरकार  के  कर्जे  कभी  कीमत  रुलाती है लहलहाती   महकती   बालियाँ भं  डार  भर  देती कहानी   फिर  हमें  होरी  कभी  संकर  बनाती  है।। 2 सुबह की  शुरुआत सरगी,  प्रीत के त्यौहार में  दुल्हन  बनी आज  सजनी, सज रही श्रृंगार में हर सुहागन की दुआएं, हर जनम का साथ हो  चांद    बैठा  चांदनी  में,  चांद   के  दीदार  में।। 3 आज आज़माने दो हर सितम जमाने को नूर आ गया मुहब्बत की समा जलाने को रूह को  इजाजत है  आज रूठ जाने की इश्क  हाजिर  हुआ है दो जहाँ मनाने को।। 4 हाथ जो  तुम्हारा मैं  थाम कर  चली होती जिन्दगी कुछ अलग  अंदाज में ढली होती रात   चाँदनी  की   आगोश  में  गुनगुनाती सुबह ओश में भीगी खिल रही कली होती।। 5 इश्क कब किसी से वजाहत मांगता है आंखों   में  ज़रा   मोहब्बत  मांगता...

नन्ही परी

नन्ही परी, गुड़ की डली, चाशनी तू प्यार की। रंगों भरी, नन्ही कली, खुशियां की बहार सी। चन्दा सा मुखड़ा, दिल का तू टुकड़ा। मेरे आंगन की, जन्नत का टुकड़ा। तेरी हंसी, मेरी खुशी,  बसंत की बयार सी। कोयल सी बोली, ख्वाबों की डोली। ममता की मूरत, सूरत की भोली। स्वाति की बूंद, गुनगुनी धूप, सावन की बौछार सी। नन्ही परी, गुड़ की डली, चाशनी तू प्यार की। रंगों भरी, नन्ही कली, खुशियां की बहार सी।