लाओ जी मेरे श्याम की पगड़ी
श्याम आए गोकुल में, धूम मची चारों ओर। बाबा झूलाये झुला, मैया खींचे डोर। चले गोकुल के धाम, मथुरा के घनश्याम झूमो नाचो गाओ आज, धन्य धन्य ये घड़ी। पालना है चन्दन का,श्रृंगार हीरे मोती का हो लेके माखन मिश्री , जोगन द्वार खड़ी। लाओ जी मेरे श्याम की, जिसपे जड़ें हैं मोती छोटी सी मोरपंख की, लाल पीली पगड़ी। मैं तो वारी-वारी जाऊँ, बलि हारी-हारी जाऊँ गिरधारी की नजर, उतारूँ घड़ी-घड़ी।।(1) जरा मटक-मटक, चले ठुमक-ठुमक सुन पैंजनी की धुन, कलियाँ भी चटकी। यमुना के तट पर, बाँसुरी की धुन पर सुध-बुध खोए सब, गोपियाँ भी भटकी। ग्वालबाल टोली संग, ग्वालिन को करें तंग छुप-छुप आके खाए, माखन की मटकी। आगे-आगे हैं कन्हैया, पीछे-पीछे चले गैया अद्भुत छटा देखके, साँझ बेला अटकी।।(2)