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जीवन के दिन चार

जीवन के दिन चार रे भैया जीवन के दिन चार। प्रभु नाम की माला जपना; प्रभु नाम की माला जपना कट जायें दिन चार रे भैया! जीवन के दिन चार। दो दिन दुख के दो दिन सुख के; दो दिन दुख के दो दिन सुख के बीत गये दिन चार रे भैया! जीवन के दिन चार। एक सहारा प्रभु का द्वारा; एक सहारा प्रभु का द्वारा बाकी सब बेकार रे भैया जीवन के दिन चार।।

बापू की एक मुस्कान!

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युद्ध के मैदान हजारों लाखों हैं सैनिक हथियारों का है जखेड़ा नीतियाँ है, देश-विदेशी हजारों साल पुरानी योद्धा हो या महारथी हुआ सब निराधार बेअसर, बेकार शान्त हुई ज्वाला स्थिर हुआ तूफ़ान बापू की एक मुस्कान।। पूछो माँ भारती से मेरे शब्दों में कहाँ इतनी ताकत मैं करूँ बस बापू की इबादत जहाँ हुआ असम्भव बापू हैं वहाँ सम्भव विश्व में, हर जगह शान्ती का एक नाम बापू की एक मुस्कान।। छोड़ आये जिन्हें, पन्नों में भूल गये जिन्हें, बातों में धर्मों के ऊपर एक धर्म, धामों में हैं, एक धाम सत्य, अहिंसा, और प्रेम का नहीं कोई दूसरा परिधान बापू की एक मुस्कान।। समाज की संजीवनी समझ सको तो समझो जान सको तो जान एक सुत्र में बाँधना एकता की ताकत सत्य की एक पहचान भारत की एक शान बापू की एक मुस्कान।।

हम भारतवासी!

कैसी पहचान तुम्हारी कैसे तुम भारतवासी भेद भाव का चश्मा चढ़ाए क्या तुम हो भारतवासी। सरहद के आशिक को देश के सिवा कुछ याद कहाँ माटी के लाल को अन्न के सिवा कुछ याद कहाँ शब्दों में जहर कैसा है;ओ मृदुभाषी कैसे तुम भारतवासी। पूरब के हो या पश्चिम के उत्तर के हो या दक्षिण के रहते हो सब साथ साथ लड़ते हो दुश्मन के जैसे बताओ कहाँ के तुम निवासी कैसे तुम भारतवासी। हम तुम एक हो जाएँ एक बाग के फूल हो जाएँ नफ़रत और भेदभाव को भूलकर हम सब भारतवासी हो जाएँ सत्य, प्रेम और अहिंसा के हम पूजारी हम सब हैं भारत के वासी। गुलाबों का गुलिस्ताँ बनाएँ खुशहाल रहे ऐसी दुनियाँ बनाएँ आत्मनिर्भर और विश्वगुरू हो एक ऐसा हिन्दूस्ताँ बनाएँ यही हमारा काबा यही है काशी हम सब हैं भारतवासी।

हिन्दी के महासागर

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हिंदी के सागर में, जब भी हम जाएं। ज्ञान-रूपी मोती से, झोली भर लाएं। शब्दों के हैं शब्द कई, अर्थों के भी अर्थ निकलते। स्वर व्यंजनों के रूप में, गांव की बोली समेटे। जो भी गाएं व लिखें,  हिन्दी में सुनाएं। गद्य और पद्य की विधा, समृद्धि इसको बनाए। सरल, सहज और सुगमता  सब ज्ञान-आनंद पाए। देवनागरी लिपि में, गुण इसके गाएं। यह सिर्फ एक भाषा नहीं, ये है अभिमान हमारा। यूं ही जगमगाता रहे, हिन्दी का सूरज तारा। हम सब की ये चाहत है, भारत-वर्ष पाएं। हिंदी के सागर में, जब भी हम जाएं। ज्ञान-रूपी मोती से, झोली भर लाएं।

भारत भूमि

15अगस्त 1947 की रात को भारत देश नहीं भारत के लोग आजाद हुए थे। देश और देशवासियों को कुछ भी कहने और कुछ भी करने के लिए,  साथ ही आजाद हुए थे सिर्फ अपने भले के लिए।

सबके अपने अपने राम🙏

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 प्रभो करो ऐसी दया, जपूं राम ही राम। हो अगर कृपा आपकी, लिखूं जय सियाराम।। रोंम रोंम में राम बसे हैं कण कण में हैं राम ही राम। सबके अपने अपने राम मन तु भजले जय सियाराम। जय सियाराम बोलो जय सियाराम।। माँ कौशल्या के लाडले राम मैया की गोद में खेले राम। जय सियाराम बोलो जय सियाराम।। राजा दशरथ के प्राणों में राम दशरथ नंदन जय सियाराम। जय सियाराम बोलो जय सियाराम।। भरत की तपस्या राम अपने खड़ाऊँ दे दियो राम। जय सियाराम बोलो जय सियाराम।। लक्ष्मण के जीवन हैं राम अपने संग संग ले गए राम। जय सियाराम बोलो जय सियाराम।। सीता के प्रियवर हैं राम पहले सीता फिर आए राम। जय सिया राम बोलो जय सियाराम।। केवट के तो  केेवट हैं राम देख चतुराई मंद मुस्कुराए राम। जय सियाराम बोलो जय सियाराम।। अहिल्या के मुक्तिदाता राम चरण छूकर धन्य कर गए राम । जय सियाराम बोलो जय सियाराम।। शबरी की पूजा हैं राम जूठे बेर खा गए राम। जय सियाराम बोलो जय सियाराम।। सूग्रीव के दुःख हरता राम मान समान दे गए राम। जय सियाराम बोलो जय सियाराम।। हनुमन के तो राम ही राम मन में बस गए जय सियाराम। ...

मुंशी प्रेमचंद जी

* एक पाठक के तौर पर प्रेमचंद जी जैसे महान कथाकार की रचनाओं को पढ़ते समय, हर बार एक नई उम्मीद का सुखद एहसास होता है। मेरा सौभाग्य है कि मैं बचपन से लेकर अभी तक उनकी कहानी और उपन्यास पढ़ने का मौका मिला। * मुंशी प्रेमचंद जी एक महान लेखक होने के साथ-साथ वह आम जनता के लेखक भी थे। साहित्य द्वारा समाज में प्रेम और भाईचारे का संदेश देने वाले कलम के सिपाही, महान उपन्यासकार ' मुंशी प्रेमचंद जी को कोटि-कोटि नमन 🙏 💐 * उनका असली नाम धनपत राय था लेकिन साहित्य में उनकी ख्याति ने उन्हें प्रेमचंद बना दिया। आजादी की लड़ाई में प्रेमचंद जी ने अपनी कलम की ताकत से लेखनी के जरिए आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने का कार्य किया।अंग्रेज़ी हुकुमत उनकी लेखनी से डर गये थे और प्रेमचंद जी के कई महत्वपूर्ण लेख, पत्र और किताबों को जला दिया। इसके बावजूद भी प्रेमचंद जी ने अपना लिखना जारी रखा और समाज में फैली बुराइयों और रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़ने के लिए कई उपन्यास और कहानीयाँ लिखी। * प्रेमचंद जी एक सच्चे भारतीय थे। वह भारत माँ के सच्चेे सपूूत हैं। प्रेमचंद जी  हिन्दी के पहलेे साहित्यकार थेे  जिन्होंनेे नेे...