संदेश

मुंशी प्रेमचंद जी

* एक पाठक के तौर पर प्रेमचंद जी जैसे महान कथाकार की रचनाओं को पढ़ते समय, हर बार एक नई उम्मीद का सुखद एहसास होता है। मेरा सौभाग्य है कि मैं बचपन से लेकर अभी तक उनकी कहानी और उपन्यास पढ़ने का मौका मिला। * मुंशी प्रेमचंद जी एक महान लेखक होने के साथ-साथ वह आम जनता के लेखक भी थे। साहित्य द्वारा समाज में प्रेम और भाईचारे का संदेश देने वाले कलम के सिपाही, महान उपन्यासकार ' मुंशी प्रेमचंद जी को कोटि-कोटि नमन 🙏 💐 * उनका असली नाम धनपत राय था लेकिन साहित्य में उनकी ख्याति ने उन्हें प्रेमचंद बना दिया। आजादी की लड़ाई में प्रेमचंद जी ने अपनी कलम की ताकत से लेखनी के जरिए आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने का कार्य किया।अंग्रेज़ी हुकुमत उनकी लेखनी से डर गये थे और प्रेमचंद जी के कई महत्वपूर्ण लेख, पत्र और किताबों को जला दिया। इसके बावजूद भी प्रेमचंद जी ने अपना लिखना जारी रखा और समाज में फैली बुराइयों और रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़ने के लिए कई उपन्यास और कहानीयाँ लिखी। * प्रेमचंद जी एक सच्चे भारतीय थे। वह भारत माँ के सच्चेे सपूूत हैं। प्रेमचंद जी  हिन्दी के पहलेे साहित्यकार थेे  जिन्होंनेे नेे...

गीत मोहब्बतों के भी लिखे जायेंगे।

यूँ ना बाँटो नफ़रतों की पर्चीयां,  गीत मोहब्बतों के भी लिखे जायेंगे। सितम चाहे कितने, भी कर लो, फूलों की ज़िद है, खिल ही जायेंगे। इतिहास जब भी, पढ़ा जाएगा, दर्शन आपके हर बार, किये जायेंगे। बीजों को गाड़ दो अतल में कहीं, एक दिन चीरकर पत्थर आ जायेंगे। एक खोजी, अंतर मन से हो जाग्रित, टूटे हुए कलम, फिर उठाए  जायेंगे। हम थे ही कब, जो सदा ही रहेंगे, बदलते दौर की कहानी बन जायेंगे।

हर हर महादेव की जय🙏

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         हर हर महादेव की जय🙏 डम डम डमरू वाले, मेरे श़म्भो भोले भाले, हे! विश्वनाथ. कैलाशी, भक्तों के तुम रखवाले, ओ बाबा डमरू वाले, मेरे श़म्भो भोले भाले।। जय शिवशंकर. जय गंगाधर, जय रामेश्वर. जय नागेश्वर, जय महाकाल. जय त्र्यम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर. जय भीमेश्वर, हे!सोमनाथ. वैद्यनाथ. भूतनाथ हरे हरे, भक्तों पे दया करने वाले, ओ बाबा डमरू वाले, मेरे श़म्भो भोले भाले।। जब कमजोर विश्वास हुआ, आकर तुमने सम्भाल लिया, थामकर हाथ मेरा, मेरी हर ख़ता को माफ़ किया, मैं नाम जपु. सुबह-शाम जपु. तेरे दर पे डेरा डाले, ओ बाबा डमरू वाले, मेरे श़म्भो भोले भाले।। 🙏💐🙏

सरहदें

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सरहदें ये सरहदें, सरहदें हूं सरहदें ऊँची नीची, लम्बी-लम्बी कटीली, नुकिली, ये सरहदें सरहदें, ये सरहदें, सरहदें हूं सरहदें हिम से लदी अतल तक गड़ी रेत पे बिछी सागर में छुपी धरती माँ को, बाँटती सरहदें हां ये सरहदें,सरहदें हूं सरहदें खेलती है ये, खून की होलीयाँ बोलती है, अंगारों की बोलियाँ पहरेदारों के रक्त में नहाई जाबांजों के, सीने की गोलियाँ ये लाल लाल, लहु पीती सरहदें। सरहदें ये सरहदें हूं सरहदें ये  घर  आगंन; उदास गाँव  तस्वीरें को सीने से लगायी  मायें गोरी के माथे की लकीर  वो तरसती, नन्ही सी आँखें सब कहती हैं, सरहद की बातें सरहदें, ये सरहदें हूं सरहदें जब तिरंगे से लिपट के दीप से बन गये सितारे हो गये कुर्बान हँसते हँसते वो आशिक, सरहद वाले हो गये अमर, माँ के रखवाले सरहदें, ये सरहदें  हूं सरहदें तुने अर्जीयाँ, कहाँ लगाई ये मर्जीयाँ, किसको बताई किसने कि है, तेरी सुनवाई सुन ओ मेघा, सुन पुरवाई बता दे, कहाँ हैं तेरी सरहदें सरहदें, ये सरहदें हूं सरहदें आओ प्रेम का, दीप जलाएं शान्ति का, संदेश सुनाएं चलो एक, नईदुनि...

मैं कौन हूँ

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मैं कौन हूँ?  चंचल सी हवा बहती घटा हूँ  उजली सी! क्या ? मैं किरणें हूँ । मैं कौन हूँ?  खिलखिलाती सुबह की धूप हूँ शाम की! क्या? मैं लालिमा हूँ। मैं कौन हूँ?  खिलता फूल, बन गया बीज़ हूँ  प्रेम का! क्या? मैं अर्पित फूल हूँ। मैं कौन हूँ? नीला अम्बर, बदलता मौसम हूँ  सृजन की! क्या? मैं धरती हूँ। मैं कौन हूँ?  सूरज का तेज, चाँद की चाँदनी हूँ  अमावस का! क्या? टिमटिमाता जूगनू हूँ। मैं कौन हूँ?  निर्मल बहती नदियाँ की धार हूँ  मिलाप का! क्या? मैं सागर हूँ। मैं कौन हूँ?  शीत सागर, गंगा का निर्मल नीर हूँ  तपती! क्या? मैं रेगिस्तान हूँ। मैं कौन हूँ?  कविता का रस, गीत का संगीत हूँ  काव्य का! क्या?  मैं अलंकार हूँ । मैं कौन हूँ? कबीर के दोहे, संतों की वाणी हूँ प्रेम पुजारन! क्या? मैं मीरा हूँ । मैं कौन हूँ?   

सच को तो सिर्फ देखा जा सकता है

जो कहते हैं कि वो सच बोल रहे हैं वो उनका सच है, जो कह रहे हैं कि वो सच बेच रहे हैं वो अपना सच बेच रहे हैं, क्यों कि सच ना बोला जाता है ना ही महसूस किया जाता है। ''सच को तो सिर्फ देखा जा सकता है '' * सच तो सूरज की किरणें हैं  जिनके आने से धरती दुल्हन बन जाती है। * सच तो वो फूल हैं  जो हर सुबह सूर्य पर अपनी खुशबू, रंग और अपना सर्वस्त्र अर्पण कर देती है। *सच तो तिरंगे में लिपटा हुआ दीप है  जो बन गया  सितारा।

मेरे पिता जी

पिता  धरती पर सूर्य का रूप हैं पिता  छाँव है तपती दोपहरी में  पिता  आत्मविश्वास से भरे नसीह़त की रोशनी लिए  मेरा नव निर्माण किया। उँगली पकड़कर  दुनिया से साक्षात्कार किया। लड़खड़ाये जब भी कदम कंधों पर उठा लिया। जीत का मंत्र देकर संघर्ष के पथपर मुझे पहाड़ सा मजबूत  बना दिया। मतलबी दुनिया में  आप हिम्मत का दरिया हो परेशानियों में  दो धारी तलवार हो। असमंजस के पलों में  मैं तेरे साथ हूँ  तू ना घबराना  यह कहकर  मुझमें आत्मविश्वास भर दिया। हार जीत को मोल ना देकर  खुशियों का द्वार खोल दिया। मेरे हर दर्द में संजीवनी बूटी बनकर  मेरा दर्द मिटा दिया। पिता का साथ  जैसे महादेव का आशीर्वाद मिला।  धरती पर सूर्य का रूप हैं पिता।