हे ज्योतिमय संत
हे प्रकाश के स्वामी, हे ज्योतिमय संत। करूँ तुम्हारी वंदन, हे निर्मल, पतंग अंधकार में भटकता, घट-घट तुमको ढूंढता, ये बैरागी मन। अज्ञानता भरी छाया, शूल से घायल काया, नश्वर अंतर्मन। अब प्रभात पट खोलो, अंध-उर प्रकाश भर दो, हे प्रभु दयावंत। हे प्रकाश के स्वामी, हे ज्योतिमय संत। करूँ तुम्हारी वंदन, हे निर्मल पतंग।