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सूखे सफ़ेद गुलाब!

सूखे सफ़ेद गुलाब! सदियों पहले अस्त हुई मेरे मुख की हँसी को  दिल के अहसास को  मेरे भाव को क्या दिनकर लौटा पाएगा ? मेरे अंंतर मन की  मरती हुई मेरी चेतना को  मेरी इच्छा को  मेरे सपनों को  क्या ये फूल खिला पाएगा ? एक विशाल-विरान रेगिस्तान से जीवन को  एक सुखी बंजर जमीन को  नीरस‌ दरख़्त को क्या ये सावन भिगा पाएगा ? मेरे शरीर को नौचते श्रापित मनुष्य को  सिसकती, बेबस सांसों को  आँखों पे पट्टी बाँधे मूकदर्शक को क्या समय सब भुला पाएगा ? हे कण-कण में बसने वाले! अपने इस अन्श को मेरी माँ की कोख को  मेरे पिता के लाड को क्या इंसाफ दिला पाएगा ?

मिट्टी

ना काटती हूँ, ना जलाती  हूँ, ना सुखाती हूँ  ना मिटाती  हूँ, किसी से ना करती हूँ भेदभाव मैं मिट्टी हूँ मिट्टी बनाती हूँ। धूप, जल, वायु, मिट्टी मिलते हैं, नूतन सृजन आरम्भ करते हैं, पशु-पक्षी, वनस्पति, मनुष्य देह, वस्त्र अलग-अलग पहनाती हूँ। सौ बार बनती सौ बार मिटती,  सत्य, साक्षात हूँ अविनश्वर हूँ रोती, हंसती,झुमती, थिरकती मौसमों संग चित्र बनाती हूँ।

ताकत जब हाथ बदलती है!

जब ताकत हाथ मिलाती है। जीवन को रोशन करती है। पर इसकी कीमत होती है। ताज और गद्दी देकर, मासूमियत छीनती है। तुमसे जुड़ी हर चीज को, सही व गलत में तोलती है। इन्द्रधनुसीय रंगों से, तुम्हारे लिए छाँटती है । श्वेत और काला रंग को, जीवन में उतार देती है। सिर पर चढ़ कर दाता बन, राज-पाट का वहम भरती है। ताकत का नसा... एक कूरूर बादशाह पैदा करती है। ताकत पे यूँ गुरूर न करो, ये सलतनत, ये बादशाही, सब हवा कर देती है। जब ताकत.... अपना हाथ बदलती है।

सागर

धरती पर फैला हुआ, जलचर का संसार। सागर के  भीतर छिपा,  रत्नों का भंडार।। जब तृष्णा न बुझा सके, पानी चारों ओर। ये खारी नीर लहरें, तट पर करती शोर।। बूंदों से सागर बना, सागर बादल होय। धरती से दूर हो के, बूंदें बनके रोय।। दिन-रात तटों पर रहता, लहरों का अनुरोध। साहिल करती मौन से, तरंग का प्रतिरोध।। सागर उठा उमंग से,  पूनम वाली रात।   उतरा चांद लहरों में, कहने अपनी बात।। इतना विशाल हृदय है, सब करता स्वीकार। धरती के हर वस्तु पर, करता है उपकार

समय का पहिया

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मत गंवा आज को सपनों में, कल रहता आज के कर्मों में, समय का पहिया चलता रहता कहता एक ही बात निरंतर। अरे! चलते रहना जीवन भर! अच्छा-बुरा कुछ भी ना जाने, ऊॅंच नीच का भेद ना माने, तेरे जतन कुछ काम न आवे देखता रह जाएगा उम्रभर। अरे! चलते रहना जीवन भर! बरसात ऋतु से पहले किसान, युद्ध होने से पहले जवान, हार जीत का फैसला होगा हमारी आज की तैयारी पर। अरे! चलते रहना जीवन भर! पशु पक्षी के लिए सिर्फ जीवन, दिन-रात के जैसा मानव मन, कर्म से समय की सीमा तोड़ इतिहास की बोगी में बैठकर। अरे! चलते रहना जीवन भर!

रोशनी की कुंजी

विश्वास रोशनी की कूंजी है  आशाओं का पासवर्ड है  युद्ध चल रहा है हर वीर लड़ रहे हैं  माना कुछ चेहरे तारे बने हैं  कुछ नाम गुम हो गए हैं  हिम्मत और हौसले की कहानी है उम्मीद। ये युद्ध भी हो जायेंगा किताबी  जीत भी होगी नवाबी ये मायुसी और उदासी बीते दिनों की बात होगी। प्रकृति इमतहान ले रही है  शायद पाठ कोई समझा रही है। हम इसी की ही रचना है  जरा धर्य रखो शायद अपनी ही रचना में  सुधार कोई कर रही है।

दिल का दरवाजा

दिल का दरवाजा  खोलना हमारे बस में नहीं है, चाहे दरवाजे पर भगवान ही क्यों ना खड़े है। हमें पता नहीं होता ये कब और किसके लिए खुलेगा और क्यों । बड़ा अजीब होता है ये दिल का दरवाजा, ना सटल ना किवाड़  ना अकल की सुनता है । चाहे जितना जोर लगाओ ये नहीं खुलता है और जब बन्द करना होता है तो भी नहीं सुनता है।

सफेद रंग

अमर  जिसका सुहाग शहीद की पत्नी कहलाती है वीरांगना।। विधवा का रंग सफेद है कहलाता उज्जवल उसे बनाता।। विधवा प्रेम तपस्वनी जाने क्यों कहते लोग उसे अभागिनी।। अकेले मां-बाप बेटे की विधवा परिवार का कुलदीप।। पहले एक परी अंधियारे से डरती आज हारता अंधियारा।। सतरंगी  जीवन को श्वेत रंग करता रंगों से मुक्त ।। (सायरी छंद)

हिन्दी का संसार

हिंदी  के   साहित्य   में,     ज्ञान   भरा     संसार  स्वर-व्यंजन  के  रूप  में,   शब्दों   की     झंकार।। वर्ण-वर्ग    की    गागरी,    शब्द  नये  छलकाय गद्य-पद्य  की   सभ्यता,  समृद्धि   इसे    बनाय।। शब्दों  के  भी  शब्द   है,   अर्थ   बनते  अनेक इतनी  सरल, सहज, सुगम, जान सके हर एक।। मात्र  भाषा  से  मिलता,   हमें  विश्व  का  ज्ञान विश्व   धरातल  पर  बनी, ‌‌हम  सबकी  पहचान।। निज  भाषा  में  छनकते,  शब्द  बड़े  अनमोल सुन  बन्धु  माँ  की  ममता,  मौसी  प्रेम न तोल।। जन-जन   के  साथ   रहती,   देवनागरी   वेश अनेकता    में   एकता,    ...

गुरु-महिमा

              (1) ज्ञान का दीप जलाकर दीप की महिमा बताकर। इतना उजाला भर दिया जगमगाते रहें जीवनभर। आसमान में उड़ने लगे गुरु ज्ञान के पंख लगाकर। गहन अन्धकार को दूर करे ज्ञान रूपी जुगनू बनकर। श्रद्धा सुमन अर्पित करूं सदा आपके शुभ चरणों पर।           (2)  किस्मत के धागों में ज्ञान रूपी मोती पिरोकर, धरती अम्बर से जन्म-मृत्यु का बंधन तोड़कर, गुरु ज्ञान की  लौ रे बन्धु! अमर कर दे  बिन अमृत पीकर।।

जय हो गिरधारी

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हे कृष्ण मुरारी, जय हो गिरधारी महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। ग्वालबाल संग गैया चरावे मटकी फोड़ी माखन खावे, नन्द गाँव के माखन चोर अद्भुत लीला सबन दिखावे। तुम्हारी लीला पे वारी दुनिया सारी महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। गोपीयों की गोकुल नगरी कान्हा ने बजाये बासूरी, यमुना तट पर रास रचाये राधा संग की प्रेम सगाई। मीरा बन गयी, प्रेम पूजारी। महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। भक्तों की तुम विनती सुनते एक पल में सारे दुःख हरते, दीनो सुदामा को तीनों लोक पांडवों की सदा रक्षा करते। सत्य के, तुम हो हितकारी। महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। अंधकार के भवसागर में ज्ञान का दीप जलाते, भट्टके अपने भक्तों को गीता का उपदेश सुनाते। जीवन का सार, गाथा तुम्हारी महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। हे कृष्ण मुरारी, जय हो गिरधारी महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। 

लाओ जी मेरे श्याम की पगड़ी

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               श्याम आए गोकुल में, धूम मची चारों ओर।                 बाबा   झूलाये  झुला,  मैया   खींचे   डोर। चले गोकुल के धाम, मथुरा के घनश्याम   झूमो नाचो गाओ आज, धन्य धन्य ये घड़ी।  पालना है चन्दन का,श्रृंगार हीरे मोती का हो लेके माखन मिश्री , जोगन द्वार खड़ी। लाओ जी मेरे श्याम की, जिसपे जड़ें हैं मोती छोटी सी मोरपंख की, लाल पीली पगड़ी। मैं तो वारी-वारी जाऊँ, बलि हारी-हारी ‌‌जाऊँ गिरधारी की नजर, उतारूँ घड़ी-घड़ी।।(1) जरा मटक-मटक, चले ठुमक-ठुमक सुन पैंजनी की धुन, कलियाँ भी चटकी। यमुना के तट पर, बाँसुरी की धुन पर सुध-बुध खोए सब, गोपियाँ भी भटकी। ग्वालबाल टोली संग, ग्वालिन को करें तंग छुप-छुप आके खाए,  माखन की मटकी। आगे-आगे हैं कन्हैया, पीछे-पीछे चले गैया अद्भुत छटा देखके, साँझ बेला अटकी।।(2)

नागपंचमी

श्रावण की शुक्ल पक्ष पंचमी  "नाग पंचमी" दीप-धूप, चंदन, रोली  और पूजा की थाली पानी और चढ़ावे दूध और श्रद्धा के फूल, खिली-खिली धूप नवेली अभी-अभी है जागी, नागदेव के पूजन को आई भक्तों की टोली, प्रकृति और भक्तों का मनमोहक ये रूप, नागदेव के दर्शन पाकर जीवन हुआ संपूर्ण।

सावन

सावन आए बरखा लाए, सबके मन को खूब लुभाए। रिमझिम-रिमझिम बरसे पानी खूब नहाई चिड़िया रानी, घर आँगन भी खूब भीगाए। सबके मन को खूब लुभाए। बारिश की बूँदों ने पत्तों से मिलके, गीत सुहाने खूब सुनाए। सबके मन को खूब लुभाए। कोयल की कुहु-कुहु पपीहा की पीहू-पीहू, नाचे मोर पंख फैलाए। सबके मन को खूब लुभाए। भीग गई है धरती सारी छाई चारों ओर हरियाली देखो इन्द्रधनुष भी आए। सबके मन को खूब लुभाए। खेल रहे हैं बच्चे सारे बादल काका ताना मारे  बिजली हमको बहुत डराए। सबके मन को खुब लुभाए।

समय

तू निराश न हो हौसला रख ये जो वक्त है इसे बीत जाने का हुनर आता है। बस तु अपने कदम छोटे कर ले जरा धीरे धीरे चल छाई है जो काली बदरा इसे छट जाने दे सूरज की किरणों को भला कोई रोक पाया है ये जो वक्त है इसे बीत जाने का हुनर आता है।

गिद्ध

आसमान में उड़ने वाले गिद्ध सांसों के थमने का इंतजार तो करते हैं। ये जो जमीन पर झपट्टने वाले गिद्ध हैं ना, इनके बारे में कुछ कहने से पहले शब्द भी दम तोड़ देते हैं। इनकी पकड़ लकड़बग्घे के झपट से भी मजबूत है, शिकार के मिलते ही नोचना शुरू करते हैं। सांसों के रहते ही, बोटी बोटी नोचते हैं। यह सिलसिला पंचतत्व में विलीन होने के बाद भी जारी रखते हैं। किसी की सांसें अब भी बच गई हो तो, गिद्ध कहते हैं। खुश रहो तुम जिंदा हो, सवाल पूछने का हक तो मरे हुए को भी नहीं देते हैं। क्योंकि… गलती तुम दोनों की है।

ए वतन मेरे

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वतन है तो हम हैं वरना कुछ भी नहीं! माँ के आँचल से शीतल महबूब के ऑंखों से गहरा ए वतन मेरे, ए वतन मेरे! मैं सात समंदर पार से, सब छोड़ के, लौट आती हूँ; पास तेरे, ए वतन मेरे। कुछ अधूरी सी आँखों में, दिल में, रह जाती है; प्यास तेरे, ए वतन मेरे। कितने रंग और रूप यहाँ, भाषा और बोलियाँ खुब यहाँ,  प्रेम का सागर; पास तेरे, ए वतन मेरे। दादी-नानी की बातों में,  चाँद-तारों वाली रातों में,  बुनें सपने सुहाने, साथ तेरे, ए वतन मेरे। मखमल सी हरियाली, शतरंगी चूनर लहराती, ये बगीयाँ, नजारे; सब रास तेरे, ए वतन मेरे।  रंग बिरंगे फूल का,  ये देश गुलीस्ताँ, सारे जग से प्यारा, मेरा हिन्दूस्ताँ, जीवन के रंग में; अहसास तेरे, ए वतन मेरे। इतिहास है गौरवशाली, जन्मभूमि है वीरों की मेरा हर जन्म; मेरी हर साँस तेरे, ए वतन मेरे। कान्हा की बंसी, डाली सावन की,  हर ताल पे; सात सूर के साज तेरे; ए वतन मेरे।  आबाद रहे खुशहाल रहे, सारे जहाँ में तू बेमिसाल रहे, तेरी सदा जयकार हो, सूरज-चाँद मेरे,  ए वतन मेरे। ए वतन मेरे, ए वतन मेरे।।

सरकार आपकी बेरूखी याद रखेंगे।

सरकार आपकी बेरूखी याद रखेंगे। हर कुर्बानी हर शहादत याद रखेंगे, नेताओं की नेता नगरी में अन्नदाता की पुस की वो चाँदनी रात याद रखेंगे, सिंहासन पर बैठी सरकार सुनो हम अन्नदाता के अँसुपात याद रखेंगे। राजपथ झाँकियाँ और अन्नदाता की रैली गणतंत्रदिवस इक्कीस की प्रभात याद रखेंगे। जब रद्दी हुई दौलत मेरी चारों पहर के वो हालात याद रखेंगे। राम जी की गद्दी, मुद्दा तीन सौ सतर राजनीति के तराजू से निजात याद रखेंगे। सुनसान सड़कों पर मीलों चलते लोग पाँव तले छालों की अधरात याद रखेंगे। तालाबंदी, दो गज की दूरी, ढका मुखड़ा बीस की टीस का आघात याद रखेंगे। बेरोजगारी, महंगाई, जनता का विरोध आत्मनिर्भरता से मन की बात याद रखेंगे। जिस काले चश्मे से सब चंगा दिखता है सरकार आपकी हर करामात याद रखेंगे। सख्त नियम से कानून जो लागू हुए  सरकार जल्दबाजी की सौगात याद रखेंगे । आवाज बुलंद भी करेंगे और सवाल भी पूछगें सरकार आपके ख़यालात याद रखेंगे। हमारे हर सवाल हर विरोध पर आपका इतिहास की खैरात याद रखेंगे सरकार आपकी बेरूखी याद रखेंगे। पुस की वो चाँदनी रात याद रखेंगे, 

मदारी

एक मदारी, बड़ा खिलाड़ी डुगडुगी बजाके खेल दिखाए उसके इशारे पे नाची बंदरिया तमाशा देखे सारी नगरिया। बातों का जादूगर सपनों का सौदागर अपनी धुन पर नाच नचाए अपने सूर वो आप सुनाए हुआ अंधेरा उठाकर झोला दिनभर का खिलाड़ी  घर लौटा थका मदारी।।

एक शिकारी बड़ा सयाना!

एक शिकारी बड़ा सयाना डाले भ्रम का दाना, जाल ऐसा डाला फस गया जंगल सारा, मची हुई है भगदड़ हो रहा है दंगल, हो गया है व्यापार बड़ा डर का कारोबार खड़ा फायदे की है साझेदारी  करे यहाँ सभी होशियारी, क्या कबूतर क्या शिकारी बचने की है पूरी तैयारी,  भूला दी है दुनियादारी सबको अपनी जान है प्यारी, ढुंढ रहे हैं सभी अनाड़ी यहाँ सभी हैं खिलाड़ी, विभिन्न-विभिन्न जाल बदले भाँति-भाँति की चाल चले, मनसुबों का नहीं ठिकाना ये शिकारी बड़ा सयाना।।