सरस्वती माँ शारदे, शत् शत् कोटि प्रणाम। विराजो मन मंदिर में, सिद्ध करो शुभ काम।। हे माँ ब्रह्मस्वरूपा, हे माँ वेद पुराण। वीणा पुस्तक धारिणी, सबका हो कल्याण।। हे माँ ज्ञान स्वरूपिणी, हे ब्रह्मा का ज्ञान। बल बुद्धि और ज्ञान का, हमको दो वरदान।। हे माँ विद्या दायिनी, दूर करो अज्ञान। भक्तजनों को दीजिए, विद्या का वरदान।। सृष्टि के हर कण कण में, वीणा का अनुराग। माँ के दर्शन मात्र से, जागे सबसे भाग।। हंसवाहिनी माँत की, महिमा अपरम्पार। मधुर नाद भर शून्य में, करती है उद्धार।। जननी स्वर लय ताल की, ज्ञान भरा भंडार। ज्ञान की ज्योति से हरो, हृदय का अंधकार।। सात सुरों के ताल पर, झूम रहा संसार। तीन लोक में हो रही, माँ की जय जयकार।। वीणा के मधुर नाद से, बह रही सरस तान। नव जीवन नव सृजन में, भर दो सरगम गान।। सद्गुण वैभव शालिनी, रहे सत्य का ज्ञान। निर्मल कोमल सभ्य हो, मन हो निष्ठावान।। हे माँ वीणा वादिनी, ऐसा दो वरदान। साधना को शक्ति मिले, और मिले पहचान।। शरणागत रक्षा करो, पूरन कीजो काज। दया करो हे भगवती, रखियो मेरी लाज।।
आलस-- जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप, खत्म कर दे जो भूत, भविष्य और वर्तमान, पूर्वजों की समृद्धि-स्वाभिमान। तुम्हारे अन्दर पल रहे महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध, महावीर, कृष्णा जैसी सम्भावना, तुम्हारी ईच्छाएँ , सपने, कर्म,भाव, एक अकल्पनीय बुद्धि ऊर्जावान। प्रेम से भरा मन और शक्तिशाली तन एक शानदार व्यक्तित्व, खत्म कर दे जो सारा अभिमान। आलस ! जीवन बना दे श्मशान ( जहाँ सिर्फ राख ही राख है)।।
कर्म ही सत्य है! सच्चाई की धारा निर्मल है स्वच्छ है कोमल है सुगंधित है, जो निरंतर प्रवाहित है। सत्य तो आनन्दित है।। कर्म ही धर्म कर्म जीवन है, लक्ष्य तो मील का पत्थर है। मन का हो या नियति का जन्म-मृत्यु का सफर है। ब्रह्माण्ड का सत्य भी कर्म से ही प्रभावित है, सत्य तो आनन्दित है।।
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