मुक्तक

1
कभी मौसम कभी कुदरत कहर बनकर सताती है
कभी  सरकार  के  कर्जे  कभी  कीमत  रुलाती है
लहलहाती   महकती   बालियाँ भं  डार  भर  देती
कहानी   फिर  हमें  होरी  कभी  संकर  बनाती  है।।


2
सुबह की  शुरुआत सरगी,  प्रीत के त्यौहार में 
दुल्हन  बनी आज  सजनी, सज रही श्रृंगार में
हर सुहागन की दुआएं, हर जनम का साथ हो 
चांद    बैठा  चांदनी  में,  चांद   के  दीदार  में।।


3
आज आज़माने दो हर सितम जमाने को
नूर आ गया मुहब्बत की समा जलाने को
रूह को  इजाजत है  आज रूठ जाने की
इश्क  हाजिर  हुआ है दो जहाँ मनाने को।।


4
हाथ जो  तुम्हारा मैं  थाम कर  चली होती
जिन्दगी कुछ अलग  अंदाज में ढली होती
रात   चाँदनी  की   आगोश  में  गुनगुनाती
सुबह ओश में भीगी खिल रही कली होती।।


5
इश्क कब किसी से वजाहत मांगता है
आंखों   में  ज़रा   मोहब्बत  मांगता है
तेरी   धड़कन  में,  सांसों  में,  बातों में
दो  पल  रहने  की  रियायत मांगता है।।


6
चाँदनी रात हम साहिलों पे मिले
झांकते फलक से चाँद तारे खिले
बात सच कह रही हूँ कसम की कसम
रातभर आसमाँ देख जल-जल गिरे।।


7
ये मन भी कितना चंचल है
पतंग सा उड़ता हर पल है
अपनी धुन में बहता रहता 
जैसे ये दरिया का जल है।।


8
जीवन तो ख्वाबों का मेला है
जज़्बाती ये दिल अलबेला है
किस्मत खेले है खेल निराले
फिर भी हर इंसान अकेला है।।

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