बांसुरी चली आओ राग ये बुलाते हैं!
इश्क की चलो कोई रस्म हम निभाते हैं।
जिन्दगी चली आओ ख्वाब ये बुलाते हैं।
प्रीत के बड़े नाजुक डोर से बधे वादे,
सुर्ख सांझ साहिल पे आशियां बनाते हैं।
अनकहे अनसुने से एहसास आँखों के
बात वो अधूरे से रात-दिन सताते हैं।
और कुछ सिवा तेरे चाहता नहीं है दिल
गूजरे हुए लम्हे याद बहुत आते हैं।
बेसुरे अधूरे, सुर-ताल शब्द खाली से
बाँसुरी चली आओ राग ये बुलाते हैं।
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