कुर्सी के खातिर
कहना और सुनाना क्या है।
गुज़रा दौर भुनाना क्या है।
यूं गद्दी पर बैठे बैठे
मन की बात बताना क्या है।
रैलीयों पर रैलियां कर
जनता को बहकाना क्या है।
नेता जी की बातों पर यूं
लड़ना और लड़ाना क्या है।
हर एक देश चले जनता से
फिर यूं आंख दिखाना क्या है।
इस कुर्सी के खातिर यूं तो
इंसानियत भुलाना क्या है।
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