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हिन्दी का संसार

हिंदी  के   साहित्य   में,     ज्ञान   भरा     संसार  स्वर-व्यंजन  के  रूप  में,   शब्दों   की     झंकार।। वर्ण-वर्ग    की    गागरी,    शब्द  नये  छलकाय गद्य-पद्य  की   सभ्यता,  समृद्धि   इसे    बनाय।। शब्दों  के  भी  शब्द   है,   अर्थ   बनते  अनेक इतनी  सरल, सहज, सुगम, जान सके हर एक।। मात्र  भाषा  से  मिलता,   हमें  विश्व  का  ज्ञान विश्व   धरातल  पर  बनी, ‌‌हम  सबकी  पहचान।। निज  भाषा  में  छनकते,  शब्द  बड़े  अनमोल सुन  बन्धु  माँ  की  ममता,  मौसी  प्रेम न तोल।। जन-जन   के  साथ   रहती,   देवनागरी   वेश अनेकता    में   एकता,    ...

कुर्सी के खातिर

कहना और सुनाना क्या है। गुज़रा दौर भुनाना क्या है। यूं गद्दी पर बैठे बैठे मन की बात बताना क्या है। रैलीयों पर रैलियां कर  जनता को बहकाना क्या है। नेता जी की बातों पर यूं लड़ना और लड़ाना क्या है। हर एक देश चले जनता से फिर यूं आंख दिखाना क्या है। इस कुर्सी के खातिर यूं तो  इंसानियत भुलाना क्या है।

गुरु-महिमा

              (1) ज्ञान का दीप जलाकर दीप की महिमा बताकर। इतना उजाला भर दिया जगमगाते रहें जीवनभर। आसमान में उड़ने लगे गुरु ज्ञान के पंख लगाकर। गहन अन्धकार को दूर करे ज्ञान रूपी जुगनू बनकर। श्रद्धा सुमन अर्पित करूं सदा आपके शुभ चरणों पर।           (2)  किस्मत के धागों में ज्ञान रूपी मोती पिरोकर, धरती अम्बर से जन्म-मृत्यु का बंधन तोड़कर, गुरु ज्ञान की  लौ रे बन्धु! अमर कर दे  बिन अमृत पीकर।।

जय हो गिरधारी

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हे कृष्ण मुरारी, जय हो गिरधारी महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। ग्वालबाल संग गैया चरावे मटकी फोड़ी माखन खावे, नन्द गाँव के माखन चोर अद्भुत लीला सबन दिखावे। तुम्हारी लीला पे वारी दुनिया सारी महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। गोपीयों की गोकुल नगरी कान्हा ने बजाये बासूरी, यमुना तट पर रास रचाये राधा संग की प्रेम सगाई। मीरा बन गयी, प्रेम पूजारी। महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। भक्तों की तुम विनती सुनते एक पल में सारे दुःख हरते, दीनो सुदामा को तीनों लोक पांडवों की सदा रक्षा करते। सत्य के, तुम हो हितकारी। महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। अंधकार के भवसागर में ज्ञान का दीप जलाते, भट्टके अपने भक्तों को गीता का उपदेश सुनाते। जीवन का सार, गाथा तुम्हारी महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। हे कृष्ण मुरारी, जय हो गिरधारी महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी।