भारत के लोग
हमारे देश में दो हिंदुस्तान बसते हैं। एक, वो जो भव्य अट्टालिकाओं में रहता है, दूसरा वो जो गरीबी में अपना जीवन यापन करता है। शहर में कुछ भी अनहोनी होती है तो पहली गाज इसी गरीबी में रहने वाले वर्ग पर गिरती है।
अक्सर हम ये पंक्तियाँ कई बार किताबों में पढ़े हैं और कई नाटकों में सुनते भी हैं, आज हमने देखा भी कि सच में आज भी हमारे देश में दो हिन्दुस्तान बसते हैं।
हर बार की तरह मैं आज भी बंद खिड़की से सबकुछ देख रही हूँ, एक वायरस ने पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया है। दौड़ती भागती दुनिया अचानक रुक सी गई है। इसका सबसे ज्यादा असर गरीबों पर हुआ है। ये वर्ग के पास ना पैसा है और वायरस की वजह से सारे काम ठप पड़े गये हैं। जिसके कारण इनके स एक वक्त का अन्न भी नहीं है। अब ये लोग पैदल ही अपने गाँव को लौटने के लिए, हजारों मील चलने को मजबूर हो गये हैं। हम अक्सर कहते हैं कि हम सब एक हैं पर सच तो ठीक उलटा है जो आज साफ साफ नजर आ रहा है ,
आज मुझे मेरी औकात का पता चला, कि मैं घर पर बैठकर खाना खाने के सिवा कुछ नहीं कर सकतीं हूँ।आज ये जिन्दगी गुनाह सी लग रही है।😔
मैं आज भी बंद खिड़की से देखती रही
मैं चाह कर भी रुक जाओ ना कह सकी।।
बाँधे उम्र की पोटरी, थामे उमींद की डोर
चल पड़े हैं पाँव श़याने, गाँव की ओर।।
शहरों को सजाते सँवारते
दिन रात भूखे प्यासे
शहरों से गाँव को लौटते
चल पड़े हैं पैदल, भारत के लोग।।
वो हजारों मील चलते रहे
कुछ भी हो बस चलते रहे
कुछ तो रास्तों में रह गये
कुछ घर पहुँचते, भारत के लोग।।
मील के पत्थर को नजदीक ला दो
थक गया हूँ अब और ना चलाओ
अक्सर हम ये पंक्तियाँ कई बार किताबों में पढ़े हैं और कई नाटकों में सुनते भी हैं, आज हमने देखा भी कि सच में आज भी हमारे देश में दो हिन्दुस्तान बसते हैं।
हर बार की तरह मैं आज भी बंद खिड़की से सबकुछ देख रही हूँ, एक वायरस ने पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया है। दौड़ती भागती दुनिया अचानक रुक सी गई है। इसका सबसे ज्यादा असर गरीबों पर हुआ है। ये वर्ग के पास ना पैसा है और वायरस की वजह से सारे काम ठप पड़े गये हैं। जिसके कारण इनके स एक वक्त का अन्न भी नहीं है। अब ये लोग पैदल ही अपने गाँव को लौटने के लिए, हजारों मील चलने को मजबूर हो गये हैं। हम अक्सर कहते हैं कि हम सब एक हैं पर सच तो ठीक उलटा है जो आज साफ साफ नजर आ रहा है ,
आज मुझे मेरी औकात का पता चला, कि मैं घर पर बैठकर खाना खाने के सिवा कुछ नहीं कर सकतीं हूँ।आज ये जिन्दगी गुनाह सी लग रही है।😔
मैं आज भी बंद खिड़की से देखती रही
मैं चाह कर भी रुक जाओ ना कह सकी।।
बाँधे उम्र की पोटरी, थामे उमींद की डोर
चल पड़े हैं पाँव श़याने, गाँव की ओर।।
शहरों को सजाते सँवारते
दिन रात भूखे प्यासे
शहरों से गाँव को लौटते
चल पड़े हैं पैदल, भारत के लोग।।
वो हजारों मील चलते रहे
कुछ भी हो बस चलते रहे
कुछ तो रास्तों में रह गये
कुछ घर पहुँचते, भारत के लोग।।
मील के पत्थर को नजदीक ला दो
थक गया हूँ अब और ना चलाओ
हो सके तो मुझे लेने आ जाओ
मौत को आँख दिखाते
भूख से पंगा लड़ाते, भारत के लोग।।
मौत को आँख दिखाते
भूख से पंगा लड़ाते, भारत के लोग।।
चल पड़े हैं पाँव श़याने गाँव की ओर।।
🙏देवी
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