सच-झूठ की दौड़ लगी है, भूतकाल और वर्तमान में खेल परियोगिता चली है, तराजू अपना संतुलन खो बैठा है, उपदेशों का बाजार सजा है, मायूसी फिर सरक कर गले लग रही है, विचारों में महायुद्ध ...
चलते चलते बहुत दूर आ गये तु मंजिल, हम राही बन गये, तेरे संग बिताये हर लम्हें मेरे गीत बन गये, तुम ख्वाब बनकर, मेरी जिंदगी बन गये, तुने जब भी मुड़कर देख...